Sudha Sikrawar

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बदलती परिभाषएँ, बदलते मापदण्ड

आज  के इस युग में जीवन की बहुत सी परिभाषाएं  बदल रही हैं। आजकल एक नया शब्द  प्रचलन में है  – डिंक , जिसका अर्थ है दोहरी आय, कोई बच्चा नहीं, जो उन जोड़ों को संदर्भित करता है जो स्वेच्छा से निसंतान हैं। ऐसे जोड़ों के पास अथाह  डिस्पोजेबल आय होती है जो कि बेमतलब की वस्तुओं को खरीदते हैं और बेकार के अनुभवों को एकत्र करते हैं। और  थोड़े से बड़े नगरों और महानगरों में यह प्रचलन जोरों पर है।

आजकल का युवा वर्ग कोई भी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार ही नहीं है। उसको तो खाना है, पीना भी है और समस्त जिम्मेदारी से मुक्त होकर अपना जीवन जीना है। आखिर अचानक  ऐसा क्या हुआ है कि विवाहित जोड़ा माता – पिता बनने के लिए तैयार ही नहीं है ?

अपने ही घर में त्रिस्कृत होती हुई औरत

मैं कई ऐसी औरतों से बात कर चुकी हूँ कि आपकी बेटी ये क्या कर रही है ? उनका जवाब यही होता है जब हमारा विवाह हुआ था, तब हम घर में मात्र एक काम की ही मशीन थे। किसने पूछा हमको, किसने जाना हमारे मन को। आज हर उस औरत की इच्छा है कि उसकी बेटी पढ़े लिखे, अपने पैरों पर खडी हो, अपना जीवन अपने हिसाब से जिए  किसी दवाब में न जिए।

अपना हिसाब :

आखिर ये अपना हिसाब है क्या ? हर युवा वर्ग को अपना स्पेस चाहिए। ये स्पेस और अपना हिसाब जीवन में क्या अचानक प्रवेश कर गया ? नहीं ! ये प्रक्रिया इतनी धीमी गति से हुई कि परिवर्तन हो रहा है और ऐसा विस्फोटक होगा न ही दृश्यमान हुआ और न ही आभास। लौटती हूँ स्त्री या औरत पर जो कि सृजनकर्ता है फिर भी उपेक्षिता है। जब वह घर से निकाली जाती है  या स्वेच्छा से कई कारणों के अन्तर्गत अपना घर छोड़ती है तो उसको उसके पिता या भाई के घर में बिलकुल भी जगह नहीं मिलती। यहाँ पर एक बेटी और बहन उपेक्षित ही नहीं होती नकार दी जाती है। और यही स्त्री या बेटी पढ़ लिख कर जब अपने पैरों  खड़ी हुई उसने समाज के सभी सन्दर्भों और परिभाषाओं को अस्वीकार कर दिया। और यहीं से जन्म हुआ  अपने हिसाब से जिंदगी जीने का।

जब इसी एकमात्र कही जाने वाली स्त्री ने घर का दायित्व छोड़ा तो सबसे पहले घर का भोजन होटलों में समा गया। जीवन शैली बदली। स्त्रियाँ ऑनलाइन परिवेश में विचरण कर रही हैं। आज लगभग सभी ऑन लाइन परिवेश में घूम रहे हैं। ऑन लाइन परिवेश में संस्कारों का कोई स्थान नहीं रहा।  बुजुर्ग उपेक्षित हैं, भावी युवा और युवा मूव ऑन जीवन शैली को अपना चुका है। और इस मूव ऑन का सिद्धांत वह अपने माता पिता पर रोपित करके रौंदता हुआ आगे बढ़ रहा है। अब युवतियों या स्त्रियों को बच्चे नहीं चाहियें, अपनी कमाई का बैंक बैलेंस चाहिए। भौतिकवाद में ही उसको  जीना है।

स्त्री उपेक्षिता और भौतिकवाद की उथल पुथल ने सामूहिक परिवार की सीमाओं को पार करके एकल परिवार की स्थापना कर दी। एकल परिवार की स्थापना होते ही  बुजुर्ग बहुत दूर हो गए या परिवार के हाशिये पर चले गए। बच्चों में संस्कार रोपित करने वाले बुजुर्ग अब हाशिये पर हैं या बहुत दूर किसी कोने में फेंक दिए गए हैं। संस्कारहीन बच्चों ने माता-पिता का भी तिरस्कार करना शुरू किया। हालंकि इस कड़ी के जन्मदाता भी वही माता पिता है। परन्तु तिरस्कृत माता -पिता की इस स्थिति को दखते हुए युवा लड़कियों ने माँ और लड़कों ने पिता बनाने से इंकार कर दिया।

अब कोई बंदिश उन्हें स्वीकार नहीं।

इस परिवर्तन की तह तक जाने के लिए चलिए थोड़े से पृष्ठ पलटते हैं – पहले जहाँ माँ  सर्वोपरि होती थी। एक स्त्री के अंदर माँ का अस्तित्व ही सर्वोपरि था। उस एक मात्र स्त्री की एक मात्र महत्वाकांक्षा होती थी सन्तान को जन्म देना। आज उसी स्त्री की अनेक महत्वाकांक्षाएँ हैं परन्तु या तो वह  DINK का अनुसरण कर रही है यानी कि डबल इनकम एंड नो चिल्ड्रन नो रेस्पोंसबिल्टी एंड ओनली पेट (Like dog or cat) या वह शादी ही नहीं करना चाहती SINK का अनुसरण कर रही है। सिंगल इनकम एंड नो किड्स लेकिन वन Pet।

ये परिवर्तन नहीं अपितु परिवर्तन का गर्भ है,  परिवर्तन का ये गर्भ जब एक पौधे का रूप लेते हुए वृक्ष में परिवर्तित होगा तब समाज  का स्वरूप क्या होगा, क्या यह विचारणीय नहीं है ? मैंने  बदलते मापदण्ड के सागर से मात्र एक बिन्दु ही उठाया है अभी तो अनगिनत घटक  शेष हैं।

DINK– Couple With Double Income and no Kids (responsibility Zero)

SINK– Single income , no kids (responsibility zero)

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Sudha Sikrawar is an author, who is believer of truth in life finds her inspiration through her surroundings. Since childhood she was fond of listening to stories which made her niquisite about the realities of the world...

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